आज का भारत पूरी तरह से बिमार है। अंगरेजों के पूर्व का भारत निरोगी था। अंगरेजों के जाने के समय का भारत भी लगभग निरोगी था। फिर ६८ वर्षों में काले अंगरेजों ने ऐसा क्या किया कि आज का भारत रोगी भारत हो गया ?
विज्ञापनों में असत्य दिखलाने की खुली छूट और सभी भोज्य वस्तुओं का पूरी तरह से बाजारीकरण। भारत की भोली-भाली जनता द्वारा उन विज्ञापनों को सच मान लेना। सरकार द्वारा एलोपैथी चिकित्सा को सर पर चढ़ा लेना, एन्टीबायोटिक्स का खुलेआम उपयोग आदि कारण गिनाए जा सकते हैं।
इसमें जंक फूड का प्रचार – प्रसार और इसे सहज कर देने से भारी खपत आज भारत के लिए खतरा बन गया है। इसी के कारण भारत का स्वास्थ्य बजट आसमान छू रहा है। आज एन्टीबायोटिक्स का लगभग ६० लाख करोड़ का व्यापार है। इसी के कारण प्रतिवर्ष ३ लाख परिवार गरीब हो जाते हैं। उनकी आमदनी से ज्यादा उनके ऊपर चिकित्सा का खर्च होता है। ऐसे में सरकार का बजट कई दृष्टि से प्रभावित होता है। इसी कारण सरकार इस बार चेत गई है कि जंक फूड पर नकेल लगाना है। नकेल कैसे से लगे इसके लिए सरकार के पास कोई नीति है, ऐसा नहीं लगता। बस ; सरकार के पास एक ही घीसा-पीटा रास्ता है ‘कर लगा देना’। इस लिए सरकार विचार कर रही है कि जंक फूड के ऊपर नए कर लगे। जंक फूड महंगा हो और लोग उससे दूर भागें। पर क्या ऐसा हो पाएगा ?
इसमें एक ही संभावना दिखलाई देती है कि इससे ट्ठेले पर जंक फूड बेचने वालों पर तो गाज गिरेगी लेकिन बड़े मुर्गे नहीं फसेंगे। क्या सरकार के.एफ.सी. जैसे संस्थानों पर नकेल लगा पाएगी ? ऐसा नहीं लगता। वे तो अंतरराष्ट्रीय स्तर के फूड माफिया हैं। उनका कोई भी सरकार कुछ बिगाड़ नहीं सकती। सच क्या है यह पता नहीं परन्तु सोसल मीडिया में कई बार देखा गया है कि के.एफ.सी. के फूड में कीड़े मिले हैं। कभी – कभी तो सोसल मीडिया में यह भी दिखलाया गया है कि के.एफ.सी. मनुष्य का मांस भी परोसा है। पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है लेकिन सोसल मीडिया में ऐसे क्लिप्स आते रहते हैं।
असली जंक फूड संस्थान ये हैं। इन्हें कोई नया कर लगाने से फूड नहीं पड़ता क्योंकि यहां तो वे लोग ही आते हैं जिनका वार्षिक स्वास्थ्य बजट बड़ा होता है। उन्हें पता होता है कि वे गलत खा रहे हैं लेकिन जीभ के वे गुलाम होते हैं। जीभ उनके विवेक को मार देता है। जीभ के आगे वे पेट की क्षमता को भूल जाते हैं।
प्रश्न खड़ा होता है कि ऐसे में क्या करे सरकार ? इसके लिए सरकार को कई सुझाव है। १) भारतीय चिकित्सा में कई ऐसे विषय हैं जिन्हें ड्रग्स माफिया ने दबा रखा है। उनमें से एक है – भारतीय दिनचर्या का पालन। जिसे सरकार को प्राथमिक पाट्ठयक्रम में लगा देना चाहिए। जिसमें स्पष्ट है कि प्रात:काल कब उट्ठना चाहिए ? उसके बाद क्या करना चाहिए ? कब और कैसे स्नान करना चाहिए ? क्या और कितना भोजन करना चाहिए ? कब और कैसे सोना चाहिए ? आदि। इसी शृंखला में रसोईघर एक चिकित्सालय की तरह है। उसे भी पाट्ठयक्रम में जोड़ देना चाहिए। रसोईघर के ४८ मसालों से मनुष्य जीवन के सभी रोगों की चिकित्सा को भी प्रचारित करना चाहिए।
ऐसे में कैसे कह सकते हैं कि सरकार की यह योजना सकारात्मक है ? हॉ ! साहसी कदम कहा ही जा सकता है क्योंकि आज तक किसी भी सरकार ने इस पर विचार नहीं किया था। ऐसा यदि हो पाया तो सच ! भारत में परिवर्तन की लहर शुरु हो सकेगी।





