क्या वास्तव में ये छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप और चाणक्य का भारत है या अंग्रेजों के पिठ्ठू और दबे-कुचले इंडियंस का देश है ? अंग्रेजों से आजादी के बाद, अंग्रेजों ने अपनी सत्ता को सांवले भारतीयों को हस्तांतरित कर दिया। और छद्म रूप से भारत में बिना रहे वो सत्ता को अपनी भूमि से ही चला रहे हैं। क्योंकि उनके द्वारा बनाये शोषण करने वाले काले कानून अभी भी वही हैं। लगभग सत्तर साल कांग्रेस ने राज किया अब वह सत्ता हस्तांतरित होकर तथाकथित राष्ट्रवादियों अर्थात भाजपा के पास...
Continue Readingसरकारी सभी बैंक अपनी करनी से नुकसान में चलते हैं। फिर दुहाई दी जाती है की साथ मे समाज सेवा भी कर रहे हैं। प्रश्न उठता है की सरकारी बैंक ने आज तक कौन सी समाज सेवा कर दिखाई है? केवल इस बात को छोड़ कर की वे इस तर्ज पर कार्य करते रहे हैं कि – “जहां न जाए निजी बैंक वहाँ खुल जाते हैं सरकारी बैंक”। लेकिन बैंक के कर्मचारी वहाँ भी कम पढे - लिखे ग्रामीणों के शोषण के अघोषित अधिकार को नहीं छोड़ते हैं। 50 रुपये से लेकर हजारों का कमीशन खाने कि लत नहीं छूटती। ऐसे में सरकार जनता के पैसों को बैंक परिचालन के लि...
Continue Readingमहर्षि वाग्भट्ट के सूत्र की जिस कार्य को करने से धर्म, अर्थ और काम की पूर्ति हो, मनुष्य को उस मार्ग पर चलकर मोक्ष रूपी अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए यही मानव जीवन का विकास है और जिस कार्य से इनमें से किसी एक कि भी हानि हो उसे कदापि नहीं करना चाहिए। पिछली कड़ी में धर्म को समझने का प्रयास करते हुए आज अर्थ और काम को समझते हुए इस कड़ी को आगे बढ़ाते हैं। कलयुग में अर्थ अर्थात पैसा ही सब कुछ है। किंतु अर्थ सिर्फ पैसा नहीं है। अगर हम अर्थ के सच्चे मायने समझ लें तो कल युग में भी सुख- शांति से जीवन यापन...
Continue Readingप्रजा धनी तो राजा धनी, धर्मम् मूलम् अर्थम्, अर्थम् मूलम् धर्मम् “प्रजा धनी तो राजा धनी” यही था 15वीं सदी तक के भारत का मूल मंत्र. यह भारत स्वावलंबी, निरोगी, स्वाभिमानी और समृद्ध था. आचार्य चाणक्य जी ने कहा – धर्मम् मूलम् अर्थम् , अर्थम् मूलम धर्मम. अर्थात धर्म के मूल में अर्थ (संपत्ति) है और अर्थ के मूल में भी धर्म है. दोनों एक दूसरे के पूरक है. धर्म हमें सृजन सिखलाता है. भारत वर्ष धार्मिक था इसीलिए समृद्ध था. तीन प्रश्न हैं. 1) अब हमें यह जानना होगा की सुखी भारत में किस प्रकार की बाजार...
Continue Readingस्वदेशी के प्रखर प्रवक्ता स्वर्गीय राजीव भाई दीक्षित जी के दिखाये मार्ग पर थोड़ा ही सही किन्तु वर्तमान सरकार मोदी जी के नेतृत्व में कुछ सकारात्मक कार्य कर रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भ्रष्टाचार के कैंसर से बिलख रहा था। राजीव भाई ने 90 के दशक में ही उसके पीछे छिपे कारणों को खोज लिया था। राजीव भाई सदैव ही किसी भी समस्या का विश्लेषण बिलकुल उसकी जड़ में जाकर करते थे और उनका मानना था अगर समस्या समझ आ जाये तो समाधान तो बहुत सरल होता है। किंतु आजकल हम समस्या को ही नहीं समझ पाते इसलिए समाधान नही...
Continue Readingभारत में प्रतिवर्ष बजट पेश किया जाता है। सप्ताह भर बजट की चर्चा सभी मीडिया में होती रहती है। कोई इसे अच्छा कहता है तो कोई बुरा। पर है क्या कभी समझ में आता है क्या ? इस पर से पर्दा उस दिन हट गया जब एक दिन गाय चराते हुए एक भाई ने मुझसे पूछ डाला कि ‘‘बजट’’ किस जीव का नाम है और आज – कल इसकी चर्चा क्यों हो रही है ? आगे वह पूछता है कि इस जीव को भारत के वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने सूटकेश में क्यों बंद कर रखा था ? और जब उसे खोला तो इतना बवाल क्यों हुआ ? क्या बजट नाम का जीव कहीं भाग गया, जो इतना...
Continue Readingअमरीका, आस्ट्रेलिया और पश्चिम के देशों में जहां स्वर्ण एक पीली धातु मात्र है़ जो मूल्यवान है और वह किसी भी देश के लिए उसकी अर्थव्यवस्था में मेरुदंड है। जबकि भारत में स्वर्ण धातु की पहचान भारत की संस्कृति के साथ है। स्वर्ण के प्रति हमारी आस्था दूसरे देशों के मुकाबले बिलकुल भिन्न है। ऐसे में स्वर्ण धातु को भारत में अर्थ का पहिया कैसे से बनाया जा सकता है ? एक ओर यह संकट है तो दूसरी ओर स्वर्ण की शुद्धता का संकट है। स्वर्ण में उसकी तरह चमक वाले केडनियम का मिलावट बहुत जोर पर है। अब शुद्ध सोना बा...
Continue Readingजनगणना में जब यह तय हो गया कि आज भी भारत की ६५ प्रतिशत जनता गांव में बसती है फिर भी शहरों को स्मार्ट बनाने का क्या तूक ? जब से नरेन्द्र मोदीजी प्रधानमंत्री बने हैं उन्हें स्मार्ट सीटी बनाने की धुन चढ़ी है। प्रश्न है कि क्या सच में भारत को स्मार्ट सीटी की जरुरत है ? स्मार्ट सीटी बनने के बाद उसमें रहने वाले लोग कौन है ? जिस प्रकार से स्मार्ट सीटी की खबरें आ रही है उससे तो यही लगता है कि स्मार्ट सीटी में करोड़पति से नीचे कोई भी परिवार नहीं रह सकता है। निम्न शुद्र समाज भी रहेगा लेकिन उनकी औकात भी ब...
Continue Readingप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पूरी ताकत इस बात के लिए झोंक दी है कि भारत में सौ नए शहर बनाकर ही छोड़ेंगे। नए शहर यानि ई-शहर। स्वप्न वैâसे – शहर साफ सुथरा है, ‘ई’ सुविधाये है, जिंदगी आसान और सुखमय है। इसी प्रकार की और कई सुविधाएं। प्रधान नरेन्द्र मोदी ने १०० नए ‘स्मार्ट-सिटी’ विकसित करने के साथ-साथ ५०० पुराने शहरों का भी ‘अटल मिशन’ के तहत काया-कल्प करने की इन दो परियोजनाओं तथा ‘२०२२ तक सभी के लिये घर’ के एन डी ए सरकार की इन परियोजनाओ की शुरूआत है। १) अटल मिशन् के तहत इन पुरने शहरों की...
Continue Readingकिसी भी देश की बैंकीय व्यवस्था सबसे बड़ा आर्थिक धोखा है यह बात अर्थशास्त्रियों को भली भांति पता है लेकिन पश्चिम का अर्थशास्त्र ऐसा ही है। यह उसकी नियती है क्योंकि पश्चिम की सामाजिक व्यवस्था से निकला उनका अर्थशास्त्र भी लूट की नियत पर ही खड़ा हुआ है। ऐसे में उससे निकला हुआ बैंकीय व्यवस्था ईमानदारी पर चलकर कैसे मुनाफे की डगर तय कर सकता है ? जब से भारत सरकार ने विदेशी बैंकों के लिए दरवाजा खोला है तभी से भारतीय बैंकों की हालत पतली होने लगी है और स्थिति यहां तक आ चुकी है कि भारतीय बैंकों को अपनी ...
Continue Readingइसमें कोई दो राय नहीं है कि डिब्बबंद और पैकेट बंद भोजन बच्चों से लेकर बुढ़ों तक के लिए नुकसानदेह है। इसके कुछ मौलिक कारण हैं। जिनमें १) सभी तैयार किए हुए भोज्य पदार्थों की आयु बहुत कम होती है। कम का अर्थ है अधिक से अधिक दो – चार दिन या उससे अधिक सप्ताह भर, लेकिन बाजारवाद व्यवस्था के कारण इसमें कुछ ऐसे रसायन मिलाए जाते हैं जिससे उस भोजन को खराब करने वाले जीवाणु उत्पन्न नहीं होते। इसमें सबसे अधिक खतरनाक तथ्य यह है कि ऐसे रसायन हमारे शरीर को भी बहुत बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। इन्हीं रसायनों म...
Continue Readingकागजी अर्थव्यवस्था के जानकार कह रहे हैं कि भारतीय विकास दर के ७.३ फीसद तक पहुंचने का मतलब है कि भारत की अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है। केंद्रीय सांख्यिकी विभाग ने जो आंकड़े दिए हैं उसमें खास बात यह भी है विकास वृद्धि की रफ्तार के मामले में भारत ने चीन को पछाड़ दिया है। जानकार आगे बता रहे हैं कि २०१५-१६ में भारतीय अर्थव्यवस्था चीन को पीछे धकेलते हुए सबसे तेज गति से दौड़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगी। यह सब कुछ काफी उत्साहजनक है और यह मोदी सरकार के पहले साल की बड़ी उपलब्धि भी मानी जानी चाहिए। लेकिन...
Continue Readingभारत में सांस्कृतिक विनाश चाहता है विश्व माफिया चेन्नै। जिसे हम विकास कह रहे हैं वह किस ओर जा रहा है इसका अनुमान कोई भारतीय लगाए तो उसके रोंगटे खड़े हो जाए। विश्व माफिया जिस प्रकार बैंकाक को विश्व का सबसे बड़ा वेश्यालय पर्यटन बना दिया। विकास के नाम पर महलें और राजमार्गों का ढांचा तो खड़ा किया गया लेकिन उन ढ़ांचों में होता क्या है ? राजमार्गों पर किसकी कारें दौड़ती है ? इन प्रश्नों के उत्तर बड़े कड़वे हैं। उन महलों में देह मसाज के नाम पर वेश्यावृत्ति के पर्यटन उद्योग चलता है और राजमार्गों पर किशोरी ...
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