एक समय था जब जीवन में सभी लोग अपनी मर्यादा में रहते थे। जैसे राजा की मर्यादा थी ,उसके मंत्रिमंडल की एक मर्यादा थी,तो उसकी प्रजा की भी एक मर्यादा थी। मर्यादा में रहने से कोई किसी कि सीमा का अतिक्रमण नही करता था तो सभी सुख- शांति से जीवन व्यतीत करते हुए उसके उत्कर्ष तक पहुंचते थे। प्रकृति और पर्यावरण की गरिमा भी इसी मर्यादा में अंतर्निहित थी। उदाहरण के रूप में राजा ही महलों और किलों का निर्माण करते थे,और वो महल बेशकीमती पत्थरों से बनी अतभूत वास्तुकला के द्योतक थे। इसी प्रकार राजा और प्र...
Continue Readingआज के भारत में लगभग 30 करोड़ चूल्हे जलते हैं। जिसमें से 20 करोड चूल्हे तो गाँव में जलते हैं। जहां ज़्यादातर चूल्हे, चूल्हे नहीं हो कर अग्निहोत्र हैं। अंतर इतना ही हो गया है की सरकार गायों को कटवाकर सूअरों को गाँव में पलवा रही है। ज़्यादातर चूल्हों में इन्ही सूअर से संकरीत काऊ जो वास्तव में जरसी, हलिस्टियन, फ्रीजियन या क्रास है, का गोबर जलता है जो प्रदूषण फैलती है। प्रश्न है की एक तरफ सरकार गाय कटवा रही है तो दूसरी तरफ प्रदूषण फैलने का राग अलाप रही है। प्रदूषण फैलने का इतना ही डर है तो गाय क्यों ...
Continue Readingसत्तर वर्षों से भारत देश के लोगों को एक आस थी कि भारत में कोई ऐसी सरकार बने जो सम्पूर्ण गऊरक्षा कर सके. भारत वासियों कि इसी आस ने नरेन्द्र मोदी को गुजरात से दिल्ली पहुँचाया. पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेई तक इस दिशा में असफल हुए. पंडित नेहरू तो मुकर गए थे. वाजपेई की चली नहीं थी. चन्द्रबाबू नायडू, ममता बनर्जी और पी आर संगमा ने तो विद्रोह ही कर डाला था. आज वही चन्द्रबाबू नायडू नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की गोद में बैठे राजनीति की चुस्की ले रहे हैं. पी आर...
Continue Reading70 वर्षों से 94% लोग चाहते हैं “गऊरक्षा”; कैसा निर्लज लोकतंत्र? पृथ्वी पर देवता और दानवों का बहुत पुराना इतिहास रहा है. इन दोनों को यदि “वेद” की दृष्टि से समझने का प्रयास करें तो स्पष्ट है की जो प्रकृति को सुरक्षित रखने के पक्ष में थे वे देव कहलाये और जो प्रकृति का अनैतिक रूप से दोहन और नष्ट करने के पक्ष में थे, वे दानव कहलाये. यदि देव और दानव को इस परिभाषा से समझें, तो आज भी दो प्रकार के लोग हैं. एक जो प्रकृति को सुरक्षित रखने के पक्ष में हैं और दुसरे जो प्रकृति को अभी...
Continue Readingअभी अभी गोमाता को लेकर जो समय बना है वह पूरी तरह से पक्ष में है. हम बचाने वाले पक्ष इन्हें पूरी तरह से माता मानते हैं. दूसरा पक्ष गौमाता के मांस को अपना आहार मन कर हमारा दुश्मन बन बैठा है. जब से उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आयी और अवैध बूचड़ खानों पर प्रतिबंध लगा व गाय के कत्ल को गंभीर अपराध की श्रेणी में डाला गया विरोधियों का होहल्ला मचा है। कोई दिन नहीं बीत रहा जब कोई अनहोनी सुनने को न मिल रही हो। अवैध बूचड़ खाने बंद होने से जैसे आकाओं के हाथ पाव फूल गये. सवाल उठता है कि क्या अवैध कारोबार क...
Continue Readingदिल्ली पिछले ७०० वर्षों से चाह रहा है कि भारत की विविधता समाप्त हो जाए और भारत में एक नई अपसंस्कृति का उदय हो जिसके पास अपनी कोई चेतना न हो। एक टिगना सा साधारण भी दिल्ली की कुर्सी से भारत पर सत्ता कर सके। यही कारण है कि मुगलों के समय से अंगरेजों के समय तक और अब काले अंगरेजों के समय में भी वैसी ही जुगत चल रही है। जल्लीकट्टू और रकला तमिलनाडु की पारंपरिक पांच हजार से भी अधिक पूरानी संस्कृति है। इस संस्कृति में बंधकर ही आज तमिलनाडु ने अपने राज्य की सभी १६ गऊ प्रजातियों को बचा कर रखा है। आज भारत ...
Continue Readingहम वर्षों से कहते आ रहे हैं कि आज जिस विकास की बात की जा रही है वह वास्तव में विनाश है। विकाश को वेदों में स्पष्ट किया है कि जिससे पंच महाभूतों (पांच यौगिक तत्व-जिससे सौर्यमंडल निर्मित है) का विकास हो, उनका शुद्धिकरण हो, वहीं संसार का वास्तविक विकास है। इसी के ठीक उल्टे जिससे पंचमहाभूतों का विनाश या अशुद्धि हो, वह विनाश है। पंचमहाभूतों में १) मिट्टी, २) जल, ३) अग्नि, ४) वायु और ५) आकाश है। आज जिसे हम विकास कह रहे हैं उससे इन पांच यौगिक तत्वों का विनाश हो रहा है। अत: यह कभी भी विकास की परिभाष...
Continue Readingराष्ट्र का प्रधानमंत्री अपनी बात से पलट जाए तो क्या फर्क रहा नरेन्द्र मोदी और दूसरे पूर्व प्रधानमंत्रियों में ? वेदों में गाय की रक्षा से संबंधित एक शब्द का उपयोग हुआ है ‘‘गोषु योद्धा’’। अर्थात् गाय की रक्षा करने योद्धा। वैदिक काल में भी गायों की रक्षा करने वाली विशेष सेना होती थी। जैसे आज राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा के लिए विशेष सीमा सुरक्षा बल हैं उसी प्रकार वैदिक काल में गायों की रक्षार्थ ‘गोषु योद्धा’ होते थे। स्पष्ट है कि उन कालों में भी गाय की रक्षा का प्रश्न था। उसकी सहज सुरक्षा नहीं थ...
Continue Readingभारत में सदियों से सभी जीवों का सम्मान रहा है। इतना ही नहीं वनस्पतियों का भी सम्मान रहा है। वनस्पतियों की पूजा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। हम भारत के लोग पीपल, बरगद, नीम, गुलर आदि पेड़ों को अपना संबंधी मानकर पूजते आये हैं। उसी प्रकार प्राणियों की भी पूजा करते हैं। जिनमें गाय, हाथी, बाघ, शेर, सिंह, बंदर, भालू, घोड़ा, सुअर आदि है। इनमें से कई वनजीव हैं तो कई घरेलू पशु। कई वन और घरेलू दोनों वातावरण में रहने वाले हैं। उदाहरण के लिए भगवान विष्णु का सहस्त्र रूप देखा जा सकता है। सभी जीव हैं उनमें और ...
Continue Readingभारत भूमि से गाय समूल नष्ट हो जाए, विश्व माफिया की इस सोच का सत्यापन उस समय हो जाता है जब भारत का पशु चिकित्सा विभाग ग्रीष्म ऋतु में गायों को एक अनजान परजीवी से बचाने में असहाय दिखता है। इस वर्ष (अभी भी) भारत में कई लाख गायों की मृत्यु हो गई लेकिन इसके कारण का सत्यापण नहीं हो पा रहा है और सरकारें हाथ पर हाथ धर कर बैठी है। अभी भी इस संकट से मुक्ति का रास्ता नहीं निकल पाया है। मकर संक्राति के बाद जैसे ही धूप तेज हुई भारत के पशु – पक्षी, जिनमें सबसे अधिक गाय अपनी प्यास बुझाने के लिए गांव क...
Continue Reading२१ जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का दूसरा वर्ष है। यह भारत की बड़ी जीत है। आज योग रहस्य से निकलकर फूटपाथ पर आ गया। अर्थात् जन-जन के लिए उपयोगी हो गया। हम कल्पना करें उन दिनों की जब संपूर्ण भारत निरोगी हुआ करता था। यानि सबसे नजदीक में १८ वीं शताब्दी तक का भारत। तब भारत में कोई गंभीर रोग नहीं था। प्रश्न उठता है कि उन दिनों कितने लोग योग करते थे ? भारतीय इतिहास गवाह है कि उन दिनों आज जैसा योग बहुत कम ही लोग करते थे। योग रहस्य की तरह था। केवल संत प्रवृति के लोगों के बीच प्रचलित था। फिर भारत कैस...
Continue Readingइस पृथ्वी पर ८४ लाख प्रकार के जीव-जन्तु हुए हैं, परन्तु वनस्पतियों की संख्या का वास्तविक गणित नहीं है। इन सभी के शरीर में केवल पांच यौगिक तत्व हैं। १) भूमि, २) जल, ३) वायु, ४) अग्नि और ५) आकाश। इतना ही नहीं ; हमारी आंखों से दिखलाई देने वाला कोई भी वस्तु इन्हीं पांच तत्वों के संयोग से बना होता है। पुराणों ने स्पष्ट कहा है। क्षिती, जल, पावक, गगन, समीर – पंच रत्न यह बना शरीर। अत: इस शरीर में इन पांच को छोड़कर कुछ और खोजना गोबर के कंडे में घृत सुखाना जैसा है। हमारे शरीर में जब कोई बिमारी होती ह...
Continue Readingफिरंगियों ने हमारी संस्कृति को तहस – नहस करने के लिए क्या – क्या नहीं किए। जिनमें से एक है काले अंगरेजों को पैदा करना। जिन्हें अभी तक भारत और भारतीयतता की समझ नहीं बनी है। तमिलनाडु में सदियों से नंदी के खेल जिसे जल्लीकट्टू कहते हैं, चलते आया है। जिस पर राजनीतिज्ञों द्वारा प्रतिवर्ष प्रतिबंध के फतवे निकाले जाते हैं। हलाँकि इस फतवे का कोई असर यहां के लोगों में नहीं होता। बल्कि लोग जिद्द में आकर खासकर इसे खेलते हैं रहे और अपनी खुन्नस सरकार के प्रति निकालते हैं। पहली बार केन्द्र सरकार ने इस खे...
Continue Readingभारत में सदियों से गाय अवध्य (हत्या करने योग्य नहीं) रही है। लेकिन अंगरेजों ने गोवध को लेकर कई तर्क प्रस्तुत किए थे। आज भी अंगरेजों के मानस पुत्र उसी तर्क को प्रस्तुत कर रहे हैं। पिछले दिनों भारत के एक सबसे बड़े समाचार पत्र समूह ने अपने संपादकीय में लिखा है कि ‘‘चरक संहिता में गोमांस खाने को लिखा है’’। तरस आती है ऐसे संपादकों की बुद्धि पर। अंगरेज चले गए – ६८ वर्ष हो गए लेकिन अभी तक हम अपनी बुद्धि पर नहीं जी रहे हैं। चरक संहिता आयुर्वेद का अभिन्न अंग है। आयुर्वेद प्रकृति का संपूर्ण विज्ञान है।...
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