डबल डिजिट विकास है आज की नई परिभाषा। बड़े सपने देखने वाले आज के प्रधानमंत्री और समस्त मुख्यमंत्रियों का आज एक ही लक्ष्य है वो है दोहरी संख्या अर्थात डबल डिजिट ग्रोथ। ये डबल डिजिट का क्या मतलब है, जब सकल घरेलू उत्पाद अर्थात जीडीपी दस प्रतिशत या उससे अधिक गति से बढ़े तो उसे डबल डिजिट ग्रोथ (विकास) कहते हैं।
मान लीजिये आज देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सौ रुपये का है और अगले वर्ष वह बढ़कर एक सौ दस रुपये हो जाये तो जीडीपी दस प्रतिशत अर्थात दो संख्या (10) बढ़कर एक सौ दस हो गया।
इसके बढ़ने या ना बढ़ने से हमे (आम जनता) क्या फर्क पड़ेगा ऐसा प्रश्न हम सबके मन में आता है। सरकार और उसकी विभिन्न अनुषांगिक संस्थाएं जैसे नीति आयोग,रोजगार मंत्रालय,वाणिज्य मंत्रालय आदि कहते हैं कि इसके बढ़ने से देश में खुशहाली,रोजगार, और आर्थिक संपन्नता आती है।क्योंकि जीडीपी जितना बढ़ेगा अर्थात उत्पादकता बढ़ेगी जिससे अधिक कर मिलेगा,लोगों को रोजगार मिलेगा,उनकी क्रय शक्ति बढ़ने से नए रोजगार खुलेंगे और देश सम्पन्न होता जाएगा।
उपरोक्त स्वप्न और बातें सिर्फ भारत सरकार,विश्व बैंक और विभिन्न संस्थाओं की कोर कल्पना के सिवाय कुछ नही है।
जबकि जीडीपी बढ़ने का आर्थिक संपन्नता, रोजगार और खुशहाली से कुछ लेना देना नही है।इसके बढ़ने से सिर्फ बड़े-बड़े उद्योगपतियों(देसी-विदेसी), केंद्र और राज्य सरकारों को ही लाभ होता है,उनकी सम्पन्नता और खुशहाली आती है। क्योंकि बड़े-बड़े उद्योगों के लालच में प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए कौड़ियों के भाव संसाधन मिलते हैं ,फिर बड़े -बड़े उद्योगों की फैक्ट्री से निकला उत्पाद सरकारों को कर के रूप में मालामाल करता है। फिर इन करों से सामाजिक सब्सिडी योजनाएं चला कर सरकारी खजाने की व्यक्तिगत लूटमारी की जाती है।
इस जीडीपी से समस्त पंचमहाभूत दूषित होते हैं और इनका विनाश करके चंद लोग सम्पन्न होते हैं।
हमारे पंचमहाभूत: पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश
1. पृथ्वी महाभूत का विनाश:
जीडीपी विकास में सबसे पहले अगर किसी महाभूत का विनाश शुरू हुआ तो वो था पृथ्वी महाभूत का विनाश क्योंकि कोयला और लौह अयस्क की मानव भूख ने पृथ्वी पर पाए जाने वाले कोयले और लोहा निकालने के लिए बड़ी-बड़ी खदानों को बड़े-बड़े उद्योगपतियों को कौड़ियों के भाव बेचा। फिर बड़ी-बड़ी मशीनों दिन-रात इनका दोहन करतीं और बड़े-बड़े भूभाग,और पहाड़ों को खोद डाला जाता।खुदाई करने से एक भूभाग का संतुलन बिगड़ता और वो अकेला उद्योगपति रातों -रात लखपति से खरबपति बन जाते।
जब से आम आदमी के घरों हेतु पत्थरों का उपयोग खोला गया ,संगेमरमर और ग्रेनाइट के पहाड़ के पहाड़ खोद-खोदकर उसमे गढ्ढा कर दिया जाता।
बड़ी- बड़ी इमारतों के लिए उर्वरक और उपजाऊ भूमि को बिल्डरों को बेचकर ना सिर्फ राज्य सरकारें अपितु वो बिल्डर भी करोड़पति बन रहे हैं।
अनावश्यक सड़कें बनाकर लाखों पेड़ों की बलि दी जा रही है,प्रकृतिविरुद्ध उद्योगों (चमड़ा,सुगरमिल, कोल्डस्टोरेज,आदि)की स्थापना से पृथ्वी को दूषित किया जा रहा है।
पहले भी उपरोक्त कार्य हो रहे थे किंतु पहले ये काम बड़ी- जनसंख्या के मानव हाथों द्वारा हो रहा था जो प्रकृति का विनाश आधारित दोहन ना करते हुए आवश्यकता आधारित संतुलित दोहन कर रहे थे।
भारत में ही सबसे पहले कोयला और लौह एवं समस्त आवश्यक धातुओं को निकालने की तकनीक थी और भारत दुनिया का सबसे अधिक उत्पादक देश भी था। किंतु वह सब मशीनों से ना होकर मनुष्यों द्वारा स्थापित था। ऐसा करने से लाखों वर्षों से भी प्रकृति का विनाश नही हुआ किन्तु जबसे जीडीपी आधारित और केंद्रित व्यवस्था बनी सबका विनाश शुरू हो गया।
2 जल महाभूत का विनाश:
पीने के पानी पर अप्रत्यक्ष रूप से कर लगाकर उसका दोहन चंद हाथों द्वारा हो रहा है और विनाश की नई इबारत लिखी जा रही है। जिस देश में पानी पिलाकर पूण्य कमाया जाता था आज उसी देश में पानी को बोतल बंद करके चंद लोग और सरकारें खरबपति हो रही हैं। जब पानी से लोग अमीर होते हैं तो उसका विनाश तय है। पहले उसे दूषित करो फिर फ़िल्टर मशीन और बोतल बंद करके बेचो और पैसे कमाओ।
उदाहरण के रूप में दिल्ली जो इस देश का सबसे अमीर और ताकतवर राज्य है उसने अपने जल स्रोतों जैसे यमुना जी को अपने कारखानों और सीवेज से दूषित किया ,अपनी हज़ारों तालाबों और बावड़ियों को सुखा कर नष्ट कर दिया और आज दिल्ली की ताकतवर सरकार अपनी ताकत के दम पर अन्य राज्यों के पानी पर कब्जा करके वहां पानी का आतंक फैला रही है।
आज दिल्ली की प्यास बुझाने के लिए मुख्य गंगा नदी से नहर काटकर 80-90℅ पानी निकाला जा रहा है। वहीं मुख्य गंगा नदी पर आश्रित तीस करोड़ लोग गंगा में पानी ना होने से त्राहिमाम कर रहे हैं और दिल्ली वासी जो उस पानी के मूल हकदार नही हैं वो उस पानी पर अपनी ताकतवर सरकार के दम पर ऐश उड़ा रहे हैं।
और यही हाल हर राज्य,जिले और गांव का है और बदतर होने जा रहा है।
3 अग्नि महाभूत का विनाश:
लाखों वर्षों से भारतवासियों ने लकड़ी और गोबर के कंडे पर ना सिर्फ अपना पौष्टिक भोजन बनाया और खाया है बल्कि अपने उद्योगों को भी इसी निशुल्क ईंधन पर चलाया। आज भी दुनिया हैरान होती है कि लकड़ी और गोबर के कंडों से 1400℃ तापमान कैसे पहुंचाया जाता है।
किन्तु जीडीपी आधारित अर्थव्यवस्था ने घर-घर के निशुल्क ईंधन को एलपीजी आधारित करके उसे बेचा अपितु दूषित भी किया है।
एलपीजी बेचने वाली चंद कंपनियों का टर्नओवर अब खरबों रुपया है और सरकार भी दिनों दिन मालामाल हो रही है।
इस ईंधन पर बनी रोटी स्वाद और स्वास्थ्य दोनों में ही बेहद खराब है।टैक्स आधारित ईंधन खरीदकर गरीब और गरीब होता जा रहा है और बेचने वाले चंद लोग हर दिन अमीर हो रहे हैं।
4: वायु महाभूत का विनाश:
जीडीपी आधारित व्यवस्था में किसी भी वस्तु को बेचने के लिए पहले शुद्ध स्रोतों को दूषित किया जाता है फिर फ़िल्टर करके मंहगे और मनचाहे दामों पर बेच जाता है। आज वायु महाभूत की तबाही होने से जीडीपी की डबल डिजिट पहुंच रही है। मोटर वाहन उद्योग और हर घर मोटरवाहन ने वह कर दिखाया है। सरकारों और उद्योगों की सबसे मोटी कमाई इसी उद्योग से हो रही है।
इसी उद्योग के विकास के लिए टोल टैक्स आधारित सड़कों का जाल बुना जा रहा है। हमने इतना विकास किया है कि शहरों में दस मिनट की दूरी जो घोड़ा गाड़ी से दस मिनट में तय होती थी वह आज एक-एक घंटे में भी पूरी नही हो रही। और सांसे उखड़ रही है वो अलग।
इन्ही उखड़ती साँसों पर जीडीपी आधारित फार्मा कंपनियां जो चंद साल पहले छुटभैया उद्योग था आज सरकारों को हिलाने की ताकत से लबरेज है और अब तो ऑक्सीजन पारलर(टैक्स वाली ऑक्सीजन) भी खुल गए हैं। आज जीडीपी में इनकी हैसियत अभी कुछ खास नही है किंतु इन्ही के माध्यम से सरकार आने वाले समय में साँसों पर टैक्स लगाकर ऑक्सीजन भेचेगी।
मतलब गरीब सांस लेने के लिए टैक्स देकर ही जिंदा रहेगा और गरीब और गरीब हो जाएगा।
5. आकाश महाभूत का विनाश:
आज से बीस-पचीस वर्ष पहले आकाश को बेचने की कल्पना भी नही थी,किन्तु सरकारों और कंपनियों ने इन्हें भी बेच खाया। आज पूरा टेलीकॉम उद्योग आकाश (स्पेक्ट्रम) को बेचकर जीडीपी का तुरुप का इक्का बनकर उभरा है।
गरीब व्यक्ति को ₹49/माह का झुनझुना देकर करोड़ों लोगों से प्रत्येक माह 49 रुपये निकाले जा रहे हैं। और उंगली पर गिनने वाले चंद लोग अरबों के खजाने को खरबों का बना रहे हैं।
आकाश बेचकर गरीबों के घर पीज़ा,बर्गर बेचने का इंफ्रास्ट्रक्टर बनाया जा रहा है।
विभिन्न एप्प्स के माध्यम से कंपनियों का गैरजरूरी सामान बेचकर बड़े उद्योग और धनवान हो रहे हैं।
असीमित सुविधाएं(इंटरनेट और कॉल) देकर उनकी नींदें समाप्त करके उनका आकाश तत्व खराब किया जा रहा है।
तो देखें किस तरह पाँचोंमहाभूतों का विनाश करके चंद लोग अपने विकास की कहानी लिख रहे हैं,और लोगों को गरीब करके अपने महल खड़े कर रहे हैं।
– गव्यसिद्ध डॉक्टर विशाल गुप्ता, एम डी (पंचगव्य)
8 thoughts on “आज का विकास अर्थात पंचमहाभूतों का विनाश”
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Vastav me vikas nahi , gear reverse laga hua hai
han
Meri gay khas rahi hai kya kare btaiye
Mulethi ka kadha pilayen.