नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जीवन वर्मा युद्ध के बाद वैâसा और कहां था, इस बात को लेकर अभी तक संसय बना हुआ है। प्रतिवर्ष कुछ न कुछ अटकलें लगती रही है लेकिन हमारी सरकारें कभी भी इस बात के लिए गंभीर नहीं दिखी हैं। चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर भारतीय जनता पार्टी की या और कोई सरकार रही हो। इस विषय को लेकर सभी दलों की समरूप नीति रही है। इसी वर्ष मोदीजी नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने कहा था कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। इसके बाद भी सुश्री ममता बनर्जी वाली तृणमूल कांग्रेस ने नेताजी के जीवन से संबंधित ६४ फाइलों को सार्वजनिक कर दिया है। इसमें कुल १२,७४४ पन्नों के दस्तावेज हैं।
सभी जानते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कभी नहीं चाहा था कि नेताजी का कद उनसे ऊंचा उठे। इसीलिए उनके जीवन से जुड़ी हुई फइलों को सीज किया गया था। उस पर शोध नहीं करने दिया गया। जब भी हो हल्ला हुआ, जांच एजेंसी बिठाई गई। जांच एजेंसियों की रिपार्ट भी वैसी ही गोल – मोल रही। सीज किए हुए फाइलों को नहीं पढ़ने दिया गया। फिर उनके जीवन का कौन सा आधार एजेंसियों को मिल पाता ? अत: इस विषय पर अनाप – सनाप पैसे खर्च किए गए। परिणाम वही ढ़ाक के तीन पात।
अब जब सुश्री ममता बनर्जी ने नेताजी के जीवन से जुड़ी फाइलें सर्वाजनिक कर दी है। इसमें से निचोड़ निकलने की आशा है। इस दिशा में महात्मा गांधी के उस बयान को भी बल मिला है जिसमें उन्होंने नेताजी के परिवार वालों को कहा था कि नेताजी की श्राद्ध न करें। इस पर आंकलन किया जा रहा है कि महात्मा गांधी भी मानते थे कि नेताजी शहीद नहीं हुए हैं। रुसी खुफिया एजेंसी ने भारत की सरकार को पत्र लिख कर बतलाया था कि नेताजी जिंदा हैं और भारत आने की तैयारी कर रहे हैं। इस पत्र को पंडित जवाहरलाल नेहरु के प्रधानमंत्रित्व वाले समयकाल में दबा दिया गया था। अर्थात नेताजी के जिंदा रहने के समाचार को सार्वजनिक नहीं होने दिया गया। यह तथ्य गांधी जी को शायद पता लग गया था इसीलिए उन्होंने उनके श्राद्ध करने को मना किया था।
सारा भारत जानता है कि इस तथ्य को लेकर पंडित नेहरु दोषी थे, यह दर्द उन्हें भीतर ही भीतर खाये जा रहा था। यह भी एक कारण हो सकता है कि उन्हें हृदयघात हुआ था। यहां पर प्रश्न यह उठता है कि आखिर नेताजी के जिंदा रहने की खबर को छिपाने के पीछे क्या मंशा रही होगी ? इस पर विश्लेषक कहते हैं कि पंडित नेहरु के सत्ता लोभ ने ही नेताजी की बची जिन्दगी को अंधकार में रखने को विवश किया। क्योंकि यदि नेताजी सामने आ जाते तो नेहरु को डर था कि वे सत्ता च्यूत हो जाते। सरदार बल्लभ भाई पटेल से भी गर्म खून वाला व्यक्ति उनके सामने होता तो वे हर पहलुओं पर चारो खाने चित्त होते।
एजेंसियों के अनुसार कांग्रेस की सत्ता के समय नेताजी के जीवन से जुड़ी कई फाइलों को जलवाया गया था। जिसमें उनके जीवन के कई दस्तावेज थे। यह आरोप उनके परिवार के लोगों ने भी लगाए हैं। ऐसे में सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों से क्या मिलेगा यह तो आने वाला समय ही बतलाएगा? फिलहाल इतना कहा जा सकता है कि सुश्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस बंद फाइल को खोलकर केन्द्र की सरकार के गाल पर तमाचा जड़ दिया है। अब केन्द्र सरकार को भी विवश होकर अपने यहां सीज कर रखे गए फाइलों को सार्वजनिक करना पड़ेगा। जिसके बारे में इसी साल कहा गया था कि सार्वजनिक नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे कई देशों के साथ हमारे संबंध बिगड़ सकते हैं।
प्रश्न यही उठता है कि विदेशी संबंध बिगड़ने के डर से कब तक नेताजी के वास्तविक जीवन को छुपाया जाएगा ? वर्मा युद्ध के बाद यदि किसी देश की सरकार ने उन्हें युद्धबंदी बना रखा था तो इस सच को उजागर करने में डर क्यों ? क्या भारतवासियों को अपने नेताजी के जीवन को जानने का अधिकार नहीं है ? इसमें जो शक की सूई चूभ रही है वह रुस के साथ ही है। रुस सदा से हमारे साथ मित्रता का भाव रखा है लेकिन उसकी कई गतिविधियां संदेहास्पद भी है। जैसे हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री की ताशवंâद में अचानक मृत्यु। जिसके बारे में बार – बार कहा जाता रहा है कि वह हत्या थी। इसमें अमरीकन खुफिया एजेंसियों ने रुस की खुफिया एजेंसी के साथ मिलकर इस कार्य को अंजाम दिया था। फिर ऐसे संदेहास्पद राष्ट्र के साथ वैâसी दोस्ती ? रुस ने अमरीका के कहने पर हमें सूपर कम्प्यूटर देने से भी इंकार कर दिया था।
अब इन दस्तावेजों को खोलकर मुकदमा भी चलाया जाए तो किस दोषी को सजा दी जाएगी ? उस समय के लगभग सभी नेता और उनके चमचे तथा अधिकारी मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैंं। निश्चित रूप से दस्तावजों से निकला तथ्य वर्तमान कांग्रेस के चारो तरफ लामबंद हो जाएगा और यहीं से उसके पतन का मार्ग प्रशस्त होगा। क्योंकि नेताजी के प्रति हम भारतवासियों के दिलों में अभी भी अगाध आस्था है।
जर्मनी में रह रही उनकी पुत्री अनीता बोस (जर्मनी में रहने के दौरान उनकी जर्मन प्रेमिका से जन्मी।) की भारत में स्वीकृति होनी भी अभी शेष है। इन सभी का समाधान भारत को एक नई दिशा दे सकता है यदि संपूर्ण मामले को राजनीति से परे रखकर खोजा जाए।