निरोगी भारत यात्रा का राजस्थान प्रवास – राजस्थान के लोगों में गाय के प्रति अगाध प्रेम है लेकिन आस्था धीरे – धीरे कमती जा रही है। कारण स्पष्ट है – गाय की उपयोगिता कमती जा रही है। यहां पर कई संगठन हैं जो गाय के विषय को लेकर चंदा इकट्ठा करने का कार्य करते हैं और फिर उसका वितरण जरुरत वाले गौशालाओं में की जाती है। गौ सेवा का ऐसा तरीका राजस्थान में ही देखने को मिला। इसके कई सुखद अनुभव भी हैं और कई कड़वे भी। इससे उन गौशालाओं को सहायता मिलती है जिन्हें चंदा नहीं मिलता अथवा जिनके पास चंदा मांगने का साहस नहीं है। दुखद तथ्य यह है कि लोगों ने आरोप भी लगाए कि गाय के नाम पर मिला चंदा भी लोग लालू प्रसाद यादव की तरह कर जाते हैं।
सड़कों पर गाएं जरुर घुमती दिखलाई देती हैं जिन्हें कोई भी दाना – पानी दे देता है। गाय को लेकर अपने पराये का भेद नहीं है। शायद यही कारण है कि आज भी राजस्थान में सबसे अधिक गाएं हैं। राजस्थानियों में गाय के प्रति आस्था तो गुजरातियों से भी अधिक है। यही कारण है कि राजस्थान में अभी भी कई ऐसी प्रजातियां बच रही हैं जो दुधारु नहीं है। लेकिन गुजरात में ऐसा नहीं है। गायों के संवर्धन पर अधिकाधिक कार्य हुए हैं। गाय को वहां उपयोगी किया गया है।
राजस्थान के गावों में गाय के लिए चारे और पानी की व्यवस्था कहीं – कहीं सामूहिक भी है जो दूसरे राज्यों में नहीं दिखती। चूंकि ऐसी अटूट आस्था से कोई व्यवहारिक लाभ नहीं दिखलाई देता है। इस कारण अब यह लुप्त हो रहा है ठीक वैसे ही जैसे प्याऊ की परंपरा लुप्त होकर बोतल बंद पानी में बदल गया। और वह भी दूध से महंगा हो गया।
यहां अधिकाधिक लोगों को मधुमेह और अर्थरायटिक्स है। एलोपैथिक चिकित्सा की जितनी सीमा है वहां तक ट्रिटमेंट कराते हैं, लाभ नहीं मिलता, निराश होकर आयुर्वेद की ओर मुड़ते हैं। आयुर्वेद से कुछ सुधार होता है। यही कारण है कि राजस्थान के लोगों में आयुर्वेद के प्रति आस्था बची है। दक्षिण भारत में केरल के बाद उत्तर भारत में आयुर्वेद ने अपनी जान कहीं बचाई है तो राजस्थान में। लेकिन सरकार की नीतियों के कारण यहां भी संतोषजनक विकास नहीं है। एलोपैथी की तर्ज पर आयुर्वेद को स्थापित किए जाने के प्रयासों ने आयुर्वेद की जान निकाल दी है। नेचुरोपैथी पर भी अच्छा कार्य करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन यहां भी वही ढाक के तीन पात।
राजस्थान अब बड़ी तेजी के साथ एजुकेटेड़ हो रहा है इस कारण आज के युवाओं का रुझान व्यवसाय से हट कर नौकरी करने की ओर हुआ है। अपना व्यापार – धंधा की अब उतनी मर्यादा नहीं रही जैसी पहले रही थी। माँ – बाप भी बच्चों से नौकरी कराना चाहते हैं। इस दिशा में सरकार की भी दृष्टि ठीक नहीं है। इतिहास बताता है कि राजस्थान जितना कम एडुकेटेड़ रहा है उतना ही विकेन्द्रीत व्यापार में अग्रणी रहा है। एडुकेशन का अर्थ यहां केवल डीग्रियों से है ज्ञान से नहीं। ज्ञान स्कूलों में नहीं मिलता। और बिना ज्ञान के व्यापार नहीं होता। राजस्थानियों को व्यवहारिक ज्ञान उनके खून में है, गाय में आस्था से है। धीरे – धीरे अब यह आस्था भी टूट रही है। पता नहीं कल का राजस्थान कैसा होगा ?
आज का राजस्थान गाय के धार्मिक पक्ष के साथ – साथ वैज्ञानिक पक्ष को भी समझना चाहता है। गाय को व्यवहारिक बनाना चाहता है लेकिन चंदा के आधार पर गौशालाओं को चलाने वाले सामाजिक कार्य कर्त्ता कुंडली मर कर बैठे हैं। इस कारण आज के युवाओं को नई गौशालाओं के निर्माण में रूचि है। कई अद्भुत कार्य हो रहे हैं। स्वदेशी विचारधारा के लिए अपने जीवन को होम कर चुके अमर बलिदानी राजीव भाई दीक्षित को बहुत लोगों ने सुना है। कई अमल भी करते हैं। दुख यही है कि – यहां भी राजनीति गंदी है। नासमझ है। विकास नहीं ; विनाश को ही प्रगति मानता है।