प्रकृति ने हमारा शरीर इस प्रकार बनाया है कि हम ज्यादा तेज गति से दौड़ नहीं सकते हैं। गति धीमी हो यही मनुष्य की प्रकृति है। ऐसे में इसके उल्टे जो कुछ भी किया जाता है वह सब कुछ शरीर की प्रकृति के विरुद्ध होता है। हमने तेज गति के लिए मोटर सायकल और कारें बनाई, हवाई जहाज बनाए। लेकिन इसके दुष्परिणाम को भी भुगता है। यही कारण रहा कि भारत में आण्विक ऊर्जा के अद्भुत विज्ञान तो विकसित हुए लेकिन वाहन के रूप में बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी ही बनाए गए।
पश्चिम के भौतिक विकास ने इसके उल्टे मोटर कारें आदि बनाए। इसके परिणाम देख लें तो दिल दहल जाता है। जिस पर सवारी करने से शरीर का गुरुत्व बिगड़ जाता है। आज विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बोलते हैं कि जहां हत्या, आत्महत्या (व आंतरिक हिंसा) से एक वर्ष में औसतन १६ लाख मौतें हो रही हैं वहां दुर्घटनाओं से एक वर्ष में ३५ लाख मौतें हो रही हैं। दुर्घटनाओं में होने वाली ३५ लाख वार्षिक मौतों में १२-१३ लाख सड़क दुर्घटनाओं के कारण होती है व पांच लाख गिरने से, पांच लाख डूबने से, चार लाख आग लगने से, चार लाख जहरीले पदार्थों से और चार लाख अन्य कारणों से होती हैं।
दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों के यह आंकड़े बहुत गंभीर तो हैं, पर दुर्घटनाओं से होने वाला दुख-दर्द इससे भी कहीं अधिक व्यापक और दुखदायी है। इसके अतिरिक्त करोड़ों लोग दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल होते हैं। इस कारण उनमें से बहुत से लोग कम या अधिक समय के लिए अपंग हो जाते हैं ; कभी-कभी तो यह अपंगता जीवन-भर चल सकती है। अनेक दुर्घटनाग्रस्त लोगों को देर तक इलाज करवाना पड़ता है, बहुत खर्च करना पड़ता है, कर्ज लेना पड़ता है गरीबी बढ़ रही है।
दुर्घटना में जितनी मौत होती हैं, उससे ४० गुना ज्यादा दुर्घटना में गंभीर चोट लगने के मामले होते हैं। हम दुर्घटनाओं की विश्व स्तर की त्रासदी को समझें तो दुर्घटनाओं में एक वर्ष में ३५ लाख मौतें होती हैं तो १४ करोड़ व्यक्तियों को गंभीर चोट लगती है। इस तरह विश्व में प्रतिवर्ष लगभग १४.५ करोड़ लोग किसी गंभीर दुर्घटना की चपेट में आते हैं जिसमें या तो उनकी मृत्यु होती है या वे गंभीर रूप से घायल होते हैं। ऐसी लगभग सभी दुर्घटनाओं का कुछ न कुछ प्रतिकूल असर परिवार के अन्य सदस्यों पर भी पड़ता है, कुछ अन्य नजदीकी व्यक्तियों पर भी पड़ता है। यदि प्रति दुर्घटना ५ व्यक्तियों पर प्रतिकूल असर माना जाए तो इस तरह लगभग ७२ करोड़ लोग दुर्घटनाओं से एक वर्ष में प्रभावित होते हैं। इन दुर्घटनाओं से जुड़े गहरे दुख-दर्द का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि इनमें बड़ी संख्या में बच्चों की मृत्यु हर साल होती है।
नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक वर्ष में ०-४ आयु वर्ग के ५६,७७८ मासूमों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में होती है, ५८,४६७ मासूमों की मौत डूबने से होती है और ४६,६५६ मासूमों की मौत जलने से होती है। यह सोच कर ही दिल दहल जाता है कि किसी ४ वर्ष से कम आयु के बच्चे के लिए जलना कितना असहनीय है। यह बहुत दर्दनाक है, पर साथ में यह क्रूर सच्चाई भी हमारे सामने है कि ऐसी लगभग ४६,००० मौतें एक वर्ष में हो रही हैं। इससे एक अंदाज लग सकता है कि दुर्घटनाएं किस असहनीय हद तक दर्दनाक हो सकती हैं। अब यदि ५-१४ वर्ष के बच्चों पर दुर्घटनाओं के असर को देखें तो नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक वर्ष में इस आयु वर्ग में १,०९,९०५ बच्चे सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए, ७७,११७ बच्चों की मृत्यु डूबने से हुई, २६,७०३ बच्चों की मृत्यु जलने से हुई और १७,८६२ बच्चों की मृत्यु गिरने से हुई। दुर्घटनाओं का युवाओं पर भी बहुत प्रतिकूल असर पड़ रहा है। यदि हम १५-२९ वर्ष के आयु वर्ग को देखें तो इस आयु वर्ग में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण सड़क दुर्घटनाएं हैं। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, इस आयु वर्ग में सड़क दुर्घटनाओं से एक वर्ष में ३,३५,८०५ मौतें हुई। उन परिवारों का गहरा दुख-दर्द असहनीय होता है, जहां भरी जवानी में अचानक दुर्घटना से मौत हो जाती है। १५-२९ के युवा वर्ग में ही
८९,४३९ मौतें डूबने से होती हैं, ८४,९८३ मौतें जलने से होती हैं व ५५,१३९ मौतें जहरीले पदार्थों से होती हैं। विश्व स्वास्य संगठन के अनुसार दुर्घटनाओं से होने वाली ९० मौतें व घायल होने की घटनाएं कम आय व मध्यम आय के देशों में होती हैं। विभिन्न देशों में निर्धन लोगों के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना बनी व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। ब्रिटेन के एक अध्ययन में बताया गया है कि धनी परिवार की अपेक्षा निर्धन परिवार के बच्चे की किसी आग लगने की दुर्घटना में मरने की संभावना १६ गुना अधिक है। भारत जैसे देशों में शहरों में आने वाले प्रवासी मजदूरों की सड़क दुर्घटनाओं से त्रस्त होने की संभावना अधिक होती है। अनेक बेघर लोग और फुटपाथवासी सड़क दुर्घटनाओं में बुरी तरह कुचल दिए जाते हैं।
ये आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि वेग मनुष्य के लिए कितना हानिकारक है। विकास का ऐसा पथ क्यों जिसमें मनुष्य् ने अपनी आयु के साथ ही खिलवाड़ कर बैठा।