चेन्नै। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर और अभी तक तमिलनाडु प्रदेश का इतिहास रहा है कि वह कभी भी केन्द्रीय राजनीति में हिस्सा नहीं लिया है। जब – जब केन्द्रीय स्तर पर ऐसे आंदोलनों का धुआं उङ्गा है तमिलनाडु ने बड़ी धैर्यता के साथ प्रतिक्षा किया है और जब आंदोलन की लपेट में पूरा देश तप रहा होता है तब वह अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है।
अभी – अभी मैगी मामले को ही देख लें। जब पूरे भारत के समाचार पत्र मैगी की खबर से रंग गए और मीडिया नए रंग की तलाश में जुड़ गया तब कहीं जाकर तमिलनाडु में मामला गरमाया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी तमिलनाडु से प्रथम सुगबुगाहट नहीं उङ्गती थी। जब देश में कुहराम मच जाता और आग शांत होती नजर आती तब कहीं जाकर तमिलनाडु में लपटें तेज होती है। लेकिन अभी एक ऐसा प्रसंग आया है जिसमें तमिलनाडु के राष्ट्रीय नेताओं की भूमिका साथ – साथ चलने की बन रही है। यही
कारण है कि ११ जून से गोवा में होने वाले हिन्दू महासम्मेलन में तमिलनाडु के हर क्षेत्र के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इनमें से बहुतेरों को हिन्दी नहीं आती लेकिन वे भाग ले रहे हैं और अपनी बात भी रखेंगे। वहां पर अपनी -अपनी अभिव्यक्ति के लिए द्विभाषिय व्यवस्था भी नहीं है। लेकिन सब कुछ अच्छे से चलता है। सब कुछ शांत और जैसे सभी को बात समझ में आ रही हो। वहां पर कोई भाषा भेद नहीं होती। इसके उल्टे दिल्ली में हमारी संसद है। जहां पर अपनी -अपनी अभिव्यक्ति के लिए द्विभाषिय व्यवस्था होने पर भी भाषाओं को लेकर कुर्सी माईक तोड़ने का इतिहास रचता आया है।
ऐसा अद्भुत प्रसंग है ‘‘अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन’’। इस अधिवेशन को हिन्दू जनजागृति समिति प्रति वर्ष गोवा में आयोजित करता है। देश भर के हिन्दू चिंतक जुटते हैं और राष्ट्र की विकट स्थिति पर चिंता करते हुए समाधान निकालने की कोशिश करते हैं। इस वर्ष यह सम्मेलन ११ जून से लेकर १७ जून के बीच आयोजित किया गया है जिसमें देश भर से लगभग पांच सौ से भी अधिक प्रतिनिधि अलग – अलग क्षेत्र से आ रहे हैं। अधिवेशन का मुख्य उद्देश्य भारत; हिन्दू राष्ट्र की स्थापना है। समिति स्पष्ट करता है कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का क्या अर्थ ? अर्थात् भारत में फिर से राम राज्य की स्थापना। जैसा काल श्रीरामचन्द्रजी का था। जैसी शासन व्यवस्था उनके काल में थी वैसी ही व्यवस्था की पुन: स्थापना ही भारत का हिन्दू राष्ट्र बनाना है। इसका कतई अर्थ यह नहीं कि गैर हिन्दुओं को देश निकाला किया जाएगा। सभी सम्मान के साथ राष्ट्र की उत्थान के लिए जीएं। जीना भी देश के लिए और मरना भी देश के लिए।
इस अभियान में पहली बार तमिलनाडु के सभी सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्रों के प्रतिनिधि गोवा जा रहे हैं जहां वे अपनी वेदना को रखकर समाधान निकालने की कोशिश करेंगे। इसमें भाग लेने वाले आर्य विद्या समाजम (केरल) के कोषाध्यक्ष श्री जयदेवन जे वी, हिन्दू मक्कल कच्छी (तमिलनाडु की एक राजनैतिक पार्टी) के राज्य उपाध्यक्ष श्री गोविंदराज देवा, गोकेन्द्रीत ग्रामीण अर्थव्यवस्था (तमिलनाडु) के विशेषज्ञ श्री पशु सेषाद्री राघवन, तिरुमणी चेरई उद्गर के अध्यक्ष शिवयोगी पेरुमल स्वामीजी, शिव सेना तमिलनाडु के अध्यक्ष राधा कृष्णन गोपाल कृष्णन, केरल उच्च न्यायालय के अधिवक्ता गोविंदन के. तमिलनाडु मक्कल कच्छी के संस्थापक अध्यक्ष अर्जुन सम्पत, तमिलनाडु हिन्दू वॉयस के दक्षिण भारत के समन्वयक श्रीनिवासन, तमिलनाडु रामट्रस्ट के कासीवेलू, केरल हिन्दू एकता मंच के सचिव स्वामी भारती महाराज, हिन्दू इलर्इंगर येल्लुची पेरवै (हिन्दू युवा जागृति संघ) के संस्थापक पाला संतोष कुमार आदि हैं। मैं भी पिछले वर्ष से इस अधिवेशन का हिस्सा रहा हूं। इस बार भी मुझे गव्यसिद्धाचार्य के नाते ‘‘गोमाता से समृद्ध भारत और गोपालन का अर्थशास्त्र एवं पंचगव्य चिकित्सा’’ विषय दिया गया है।
इस प्रकार देखा जाए तो इस बार हिन्दू जन जागृति ने भारत में राम राज्य की स्थापना जो बिड़ा उङ्गाया है यह राष्ट्र व्यापी है और इस बार इसमें तमिलनाडु के सामाजिक वैज्ञानिकों की सीधी भूमिका है। इस कारण इस अधिवेशन को एक विशेष नजर से देखने की जरुरत है। लगता है कि इस बार गोवा की धरती से उङ्गा यह आंदोलन भारत के राजनैतिक और सामाजिक आधारों को प्रभावित ही नहीं करेगा बल्कि एक ऐसी क्रांति खड़ी करेगा जिसमें तप कर भारत फिर से स्वर्णिम युग की ओर प्रस्थान कर सकता है।
कई बार बिकाऊ मीडिया इसकी आलोचना भी करता है लेकिन प्रश्न उङ्गता है कि क्या भारत के हिन्दुओं को अपनी सुरक्षा के उपाय करना भी अपराध है ? इस पूरे आंदोलन को हिन्दू स्वरक्षा की भावना से देखनी चाहिए। – जय हिन्द.